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विशेष: आखिर कब करेंगे सीएम नीतीश कुमार उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ कारवाई, जानिए!

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जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट

बिहार नेशन: बिहार की सियासत में इन दिनों भूचाल आया हुआ है। जहाँ एक तरफ राजद पार्टी के विधायक एवं पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के ही वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी मोर्चा खोल रखा है। सीएम नीतीश कुमार दोनों तरफ से घिरे हुए हैं। लेकिन सीएम नीतीश कुमार भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। वे भी एक तरफ राजद विधायक सुधाकर सिंह पर कारवाई के लिए दवाब बनाए हुए हैं तो दूसरी तरह उपेंद्र कुशवाहा को भी ठिकाने लगाने के लिए कुशवाहा के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।

उपेंद्र कुशवाहा

दरअसल उपेंद्र कुशवाहा राज्यपाल कोटा से बिहार विधान परिषद में सदस्य मनोनीत हुए हैं। जो नेता, समाजसेवी, पत्रकार, लेखक, चिकित्सक, इस कोटे से विधान परिषद का सदस्य होता है। उसे किसी एक पार्टी की सदस्यता लेनी होती है।. उपेंद्र कुशवाहा ने JDU की सदस्यता ली है। नियम के मुताबिक राज्यपाल की ओर से मनोनीत एमएलसी ने जिस दल की सदस्यता ली है, उस दल के सभी प्रोटोकॉल और ह्विप को मानना होता है। नहीं तो वह दल उनकी सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव बिहार विधान परिषद में दे सकता है। इसी बात का इंतजार JDU आलाकमान को है। उपेंद्र कुशवाहा 19 और 20 फरवरी को पार्टी के खिलाफ बैठक कर लें और पूरे एविडेंस के साथ जदयू उनकी सदस्यता समाप्त करने की फरियाद बिहार विधान परिषद के सभापति के सामने कर देगा।

आपको बता दें कि इससे पहले सम्राट चौधरी, प्रेम कुमार मणि, महाचंद्र प्रसाद सिंह, नरेंद्र सिंह जैसे नेताओं के खिलाफ JDU ने विधान परिषद में प्रस्ताव देकर उनकी सदस्यता समाप्त करवाई थी। यह घटना उस समय की है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दिया था। इसके बाद जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने थे। मांझी के साथ उनके कैबिनेट में यह तमाम नेता मंत्री बने थे। लेकिन, जब मांझी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ा तो यह सभी नेता उनके पक्ष में चले गए। तब नीतीश कुमार ने उनके खिलाफ बिहार विधान परिषद में प्रस्ताव देकर पार्टी विरोधी गतिविधि का हवाला देकर उनकी सदस्यता समाप्त करा दी थी।

वहीं पप्पू यादव के साथ भी ऐसा ही हुआ था। 2014 में पप्पू यादव आरजेडी से चुनाव जीत चुके थे और उन्होंने RJD के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया था। इसके बावजूद उन्हें 5 साल तक सांसद बनाए रखा। उससे पहले राज्यसभा के सदस्य रहे रामकृपाल यादव ने एमपी रहते भाजपा की सदस्यता ले ली थी। फिर भी लालू यादव ने उनकी सदस्यता समाप्त नहीं कराई थी। दरअसल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई मौकों पर अपने नेताओं को ऐसे ही दरकिनार करते रहे हैं। इससे पहले शरद यादव से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद ले लिया गया। फिर उन्हें चुनाव नहीं लड़ने दिया। जब वह पूरी तरह से बेचैन हो गए तो उन्होंने पार्टी त्याग दी।

सीएम नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के साथ भी ऐसा ही किया था। केंद्रीय मंत्री रहते उन्हें राज्यसभा का सदस्य नहीं बनाया और अंत में उनको मंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में आरसीपी सिंह ने जदयू से इस्तीफा दे दिया। कमोबेश उपेंद्र कुशवाहा के केस में भी नीतीश कुमार कुछ ऐसा ही करने वाले हैं। खैर, अब इन सारी राजनीतिक गतिविधियों के बीच सीएम नीतीश को इंतजार है तो उपेंद्र कुशवाहा के उस कदम का जिससे उन्हें उनके खिलाफ कारवाई का मौका मिले।

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