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नीतीश कुमार टाइमिंग के साथ खेलते हैं बेहतरीन शॉटस, बदलने लगे हैं फिर पैंतरा, लेकिन क्यों, पढें ये पूरी रिपोर्ट !
जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट
बिहार नेशन: राजनीति और क्रिकेट दोनों एक जैसा होता है। क्रिकेट में जिस तरह से टाइमिंग का विशेष महत्व होता है ठीक उसी तरह से राजनीति में भी कब कौन सा फैसला लेना है इसका विशेष महत्व होता है। जिसकी टाइमिंग अच्छी होगी वह क्रिकेटर की तरह ही अधिक बेहतरीन शॉटस खेलेगा।
कुछ इसी तरह की बात बिहार के संदर्भ में भी सीएम नीतीश कुमार से जुड़ा हुआ है। नीतीश कुमार उनमें से एक हैं। यही वजह है कि पिछले तीन दशक से वो लगातार अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। नीतीश की टाइमिंग इतनी बेहतरीन होती है कि जी 20 में पीएम से मुलाकात के बाद वो ज़मीनी कार्यकर्ताओं से खुद मिल रहे हैं और ज़मीनी हकीकत को भांप कर कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं।
लेकिन इसी बीच यही कार्यकर्ता उनके घर के बाहर नीतीश के पीएम बनने की दावेदारी को लेकर खुलकर दावेदारी ठोक रहे हैं। ये सब टाइमिंग देखकर ही हो रहा है। मुंबई मीटिंग से पहले पीएम पद की दावेदारी की बात करने वाले समर्थकों पर नाराज होने वाले नीतीश अब जी-20 में पीएम मोदी से मिलने के बाद अलग अंदाज में दिख रहे हैं।
दरअसल नीतीश कुमार की राजनीति को बारीकी से समझने वाले लोग खुलेआम कह रहे हैं कि नीतीश नया करतब दिखाने से पहले कई इशारा करते हैं। अगर उनके सहयोगी इसे भांपने में विफल रहते हैं तो यह उनकी कमी है। जीतन राम मांझी और प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के सालों पुराने सहयोगी हैं जो उनके स्टाइल ऑफ फंक्शनिंग को बेहतरीन तरीके से समझते हैं। दोनों ने नीतीश के भविष्य की राजनीति को भांपते हुए अपनी जुबान खोल दी है। ज़ाहिर है इसकी वजह भी है।
अब नीतीश महागठबंधन में अप्रासंगिक दिखने लगे हैं। क्योंकि जिस तरह से राज्य में जेडीयू की सबसे करीबी सहयोगी आरजेडी कांग्रेस की जुबान में बात करने लगी है। इतना ही नहीं मुंबई में लालू प्रसाद ने जिस तरह से राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट तक मानकर सियासी दांव खेलने लगे हैं उससे बिहार की महागठबंधन पॉलिटिक्स में नीतीश अब हाशिए पर दिखने लगे हैं। यही वजह है कि एक मंझे हुए नेता की तरह नीतीश पहले पीएम मोदी के आमंत्रण पर जी 20 की बैठक में पहुंचे और वहां से वापस लौटकर अपने समर्थकों से मिलकर उनका भरोसा जीतने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। ये इसी प्रयास का असर है कि कल तक सभा में धीमी आवाज में भी पीएम पद की मांग कोई कार्यकर्ता करता था तो नीतीश आग बबूला हो जा रहे थे लेकिन अब उनके समर्थक घर के बाहर ही उनके पीएम पद की दावेदारी को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। लेकिन नीतीश इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं।
दरअसल आरजेडी कांग्रेस और सीपीआईएमएल के साथ राजनीति में मजबूत गठजोड़ बना चुकी है। कांग्रेस 9 लोकसभा सीटों पर वहीं सीपीआईएमएल 6 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोक रही है।ऐसे में नीतीश के लिए बड़ी मुश्किलें सीटों का चुनाव भी है जहां से कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव लड़ने को लेकर लगातार दबाव बना रहे हैं। इनमें से एक सीट कटिहार की है जहां कांग्रेस के तारिक अनवर दावा ठोक रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में कटिहार से जेडीयू का सांसद है। यही हाल सुपौल का है जहां से जेडीयू के सांसद कामत हैं लेकिन रंजीता रंजन यहां से लगातार दबाव बनाने में जुटी हुई हैं। यही हाल सासाराम सहित छपरा, गोपालगंज का है। सासाराम से कांग्रेस की दिग्गज मीरा कुमार चुनाव मैदान में उतरने का मन बना चुकी हैं।
वहीं औरंगाबाद से निखिल कुमार के नाम की भी चर्चा है। यही हाल सीपीआईएमएल का है जो आरा बक्सर सहित कुल 6 सीटों पर दावेदारी ठोक रही है।
आपको बता दें कि नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती अपने सोलहों सांसदों के लिए सीट दिलाने को लेकर है। जेडीयू के सांसद भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर पशोपेश में हैं इसलिए नीतीश कुमार पर उनकी पार्टी के सांसदों को दबाव बढ़ता जा रहा है। ज़ाहिर है नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में मनचाही सीटों को लेकर दावेदारी करने लगे है। इसलिए उनके समर्थक उनके पीएम पद की मांग कर इंडिया अलायंस पर दबाव बढ़ाना शुरू कर चुके हैं।
नीतीश की प्राथमिकताओं में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना सबसे उपर है। नीतीश हर हाल में 16 से ज्यादा सीटों की मांग करने वाले हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद नई परिस्थितियों में कोई अवसर पैदा होता है तो नीतीश कुमार उस अवसर को जाया नहीं करने वाले हैं।
इसीलिए नीतीश कुमार के लिए रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर लगातार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार इंडिया अलायंस को एक कमरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि रोशनदान की तरह एनडीए में भी उनका संपर्कसूत्र तैयार है। पीएम मोदी के साथ गर्मजोशी से नीतीश कुमार की मुलाकात उन विकल्प की ओर इशारा भरपूर कर रही है। ज़ाहिर है इन मुलाकातों के सहारे इंडिया अलायंस पर दबाव और फिर ज्यादा से ज्यादा मनचाही सीटों का चुनाव कर सांसदों को जिता नीतीश बिहार की राजनीति पर मजबूत पकड़ कायम रखना चाहते हैं।
आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर 2029 तक के लिए अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने का दांव खेला है। इसलिए साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश फिर से पलट जाएं तो इसमें मेरे सहित आरजेडी के सुप्रीमों को भी कोई हैरानी नहीं होने वाली है।
ज़हिर है आरजेडी भी अपनी रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार का साथ हर हाल में चाहती है। इसके पीछे बीजेपी का ज्यादा से ज्यादा नुकसान और आरजेडी का ज्यादा फायदा आरजेडी की रणनीतियों का हिस्सा है। इसलिए लोकसभा चुनाव ज्यों ज्यों पास आ रहा है आरजेडी अपने पत्ते खुलकर खेलने लगी है।