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विशेष रिपोर्ट: कभी आरजेडी सांसद सुरेंद्र यादव ने संसद में फाड़ दिया था महिला आरक्षण बिल, लेकिन क्यों पढिये पूरी खबर. . . . .

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जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट

बिहार नेशन: भले ही बीजेपी ने महिला बिल को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया हो और आज यानी बुधवार को इसपर चर्चा होगी। लेकिन आपको बता दें कि महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला 27 वर्ष पुराना है। यह बिल सबसे पहले 1996 के सितंबर महीने में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने पेश किया था। लेकिन यह बिल तब से अबतक अटका पड़ा है।

दरअसल इसमें पेंच आरक्षण को लेकर फंस रहा है। राजद और समाजवादी पार्टी जैसी कई सामाजिक विचारधारा की लड़ाई लड़ने का दावा करनेवाली पार्टियां चाहती हैं कि इसमें पिछड़े और दलितों और कमजोर वर्गों को आरक्षण के अंदर आरक्षण मिले।

आपको बता दें कि एक समय ये विधेयक जब अपने शुरुआती दौर में था तब इसे फाड़ दिया गया था। बात है साल 1998 की। तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के हाथ से आरजेडी सांसद सुरेंद्र यादव ने ये बिल फाड़ दिया था। यह खबर खूब सुर्खियों में रही थी। हालांकि इस घटना को संसद में अशोभनीय माना जाता है। सुरेंद्र यादव इसके बाद कई बार सांसद बनने की कोशिश किए लेकिन उन्हें हार ही मिली। वह दोबारा कभी लोकसभा नहीं पहुंच पाए।

सुरेंद्र यादव को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का करीबी कहा जाता है। वह राजनीति में आज भी सक्रिय हैं और नीतीश सरकार में मंत्री हैं। सुरेंद्र यादव ने कहा था कि बाबा साहेबा भीम राव आंबेडकर उनके सपने में आए थे और उनसे कहा था कि संविधान खतरे में है। और इसी के चलते उन्होंने आडवाणी से बिल को छीनकर फाड़ दिया था।

सवाल अब ये है कि इस बिल के लागू होने से क्या बदलेगा। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में इसे लागू किया गया, तो इससे संसद में महिला सांसदों का पूरा नंबर बदल जाएगा। इस वक्त लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है। अगर महिला आरक्षण बिल पास होता है, तो महिला सांसद की संख्या कम से कम 33 परसेंट होगी, यानी महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 179 हो जाएगी।

यह भी मालूम हो कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने साल 2008 में महिला आरक्षण बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया और 9 मार्च 2010 को यह पारित हो गया। हालांकि इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका, क्योंकि सरकार की प्रमुख सहयोगी आरजेडी और समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध कर दिया था।

दरअसल आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने आरक्षण में आरक्षण की मांग को लेकर इस बिल का विरोध किया था। उन्होंने सरकार से समर्थन वापस लेने तक की धमकी दे दी। जिस वजह से कांग्रेस ने बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया।

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