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जिस बीजेपी ने निभाई थी लोजपा की टूट में अहम भूमिका अब, वही बनता जा रहा है उसके गले की फांस, पढें ये विशेष रिपोर्ट
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: जहाँ एक तरफ बीजेपी विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA को टक्कर देने के लिए कई रणनीतियां बना रही हैं वहीं दूसरी तरफ उसके एनडीए में ही घमासान मचा है। दरअसल ये घमासान अलग-अलग लोजपा पार्टी के नेता पशुपति कुमार पारस और भतीजा चिराग पासवान के बीच छिड़ी है। क्योंकि लोजपा के दोनों गुट एक ही सीट से चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं ।
दरअसल लोकजनशक्ति पार्टी के दो गुट इस वक़्त एनडीए के गठबंधन दल के तौर पर शामिल हैं। एक तरफ जहां दिवंगत नेता रामविलास पासवान के भाई पारस नाथ का गुट हैं तो दूसरी तरह पासवान के बेटे चिराग पासवान का। दोनों ही दल भाजपा के सहयोगी हैं लेकिन फिलहाल पारसनाथ को रामविलास की जगह मंत्री बनाया गया हैं। रामविलास के निधन के बाद लोजपा में बड़ी फुट सामने आई थी। पारस नाथ ने बगावत करते हुए पार्टी की कमान खुद के हाथो में ले ली थी। उन्होंने खुद को लोजपा का असली गुट बताया था। उनके इस दावे के बाद उन्हें मंत्री बना दिया गया था।
दरअसल रामविलास पासवान की परंपरागत सीट हाजीपुर से पारस नाथ और चिराग दोनों ही लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। इस पर चिराग पासवान का कहना है कि जब से उन्होंने होश संभाला, तब से ही उन्होंने अपने पिता रामविलास पासवान को हाजीपुर के सांसद के तौर पर ही देखा। बेटा होने के नाते हाजीपुर से उनका लगाव है। 1977 के बाद से रामविलास पासवान हाजीपुर से 8 बार सांसद रहे थे। इस सीट से वह सिर्फ दो बार 1984 और 2009 में हारे थे। वहीं चिराग पासवान ने जमुई से अपनी सियासी पारी की शुरुआत की। 2019 में रामविलास पासवान हेल्थ इशूज के कारण चुनाव नहीं लड़े। वह राज्यसभा के माध्यम से संसद पहुंचे।
वही दूसरी तरफ चाचा पारसनाथ ने कहा कि वह एनडीए के सच्चे और सबसे विश्वसनीय सहयोगी हैं। वे शुरू से एनडीए के साथ हैं। जहाँ तक हाजीपुर से चुनाव लड़ने का सवाल हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें हाजीपुर से चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकती। वे खुद अभी वहां से सांसद हैं।
बता दें कि बीजेपी ने जिस समय लोजपा में विभाजन की नींव रखी थी उस समय उसने सोंचा भी नहीं होगा कि उसके सामने ऐसी परिस्थितियां आएंगी । लेकिन अब वही विभाजन उसके गले की फांस बनता जा रहा है। अब वह समझ नहीं पा रही है कि वह कैसे चाचा और भतीजे की लड़ाई को समाप्त करे जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में उसे नुकसान न हो। फिलहाल यह लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। दोनों ही अपनी जिद पर अड़े हैं।
गौरतलब हो कि लोजपा के विभाजन में जेडीयू और बीजेपी की प्रमुख भूमिका थी। उस समय जेडीयू, एनडीए की सहयोगी दल थी। दोनों की यह रणनीति थी कि लोजपा को इस तरह से कमजोर कर दिया जाए कि उसका प्रभाव न रहे ।