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बिहार: सेवा समाप्ति के बाद भुखमरी के कगार पर पहुंचे हजारों प्रेरको ने सरकार से एक बार फिर लगाई गुहार
जे.पी.चन्द्रा की रिपोर्ट
बिहार नेशन: वैसे तो बिहार सरकार रोजगार देने के लाख दावे करती है लेकिन धरातल पर कुछ और ही बात सामने देखने को मिल रही है।
राज्य में नीतीश सरकार के उदासीन रवैये के कारण आज हजारों प्रेरक सड़क पर हैं । उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या कब से मुँह बाये खड़ी है। आज ये प्रेरक दर- दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं ।
दरअसल पूरे बिहार में साक्षर भारत के अन्तर्गत 19 हजार प्रेरक और समन्वयक की बहाली नीतीश सरकार ने 2011 में की थी । यह बहाली प्रधान महासचिव के पत्रांक 402 , बिहार सरकार के आदर्श प्राथमिक शिक्षक चयन के रोस्टर 1368 के अनुसार पूरे बिहार मे प्रौढ़ शिक्षा अन्तर्गत संचालित साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत 19हजार समन्वयको की बहाली दिनांक 2 मार्च 2011 के आलोक में की गई थी।
इसके तहत प्रत्येक पंचायत में एक महिला और एक पुरुष की बहाली की गई थी । इनलोगों से 2011 से लेकर मार्च 2018 तक सभी प्रकार के बिहार सरकार द्वारा कार्य लिया गया । लेकिन मार्च 2018 के बाद से इनलोगों की सेवा समाप्त कर दी गई ।
वहीं इस मुद्दे पर कई बार ये प्रेरक और समन्वयको ने प्रदर्शन किया । लेकिन हर बार इन सभी को केवल सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया । उसके बाद से ही ये सभी लोग सड़क पर हैं । अब ये सभी लंबे समय से रोजी-रोटी की समस्या से जुझ रहे हैं ।
घटराईन पंचायत के वरीय प्रेरक निरंजन कुमार एवं तनुजा कुमारी ने बताया कि वे लोग अपने जिले में 400 से अधिक प्रेरक हैं । जबकि पूरे बिहार में 19 हजार से अधिक लोग हैं ।
उन्होंने बताया कि वे लोग मार्च 2018 से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं । उनलोगों के कार्यकाल को सरकार द्वारा बढाने का बार-बार आश्वासन दिया गया लेकिन कुछ नहीं हुआ । अब उनलोगों के सामने आत्महत्या करने की स्थिति आ गई है और इसके अलावा उनलोगों के पास कोई रास्ता नहीं बचा है।
वहीं महुँआवा पंचायत के वरीय प्रेरक संजय कुमार सिंह का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा उनलोगों का मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है। हम सभी का परिवार कब से बेरोजगारी की मार से जुझ रहा है। उनलोगों को पंचायत कार्यालय का व्यय भी नहीं दिया गया है। केवल चार माह का एक बार कार्यालय व्यय दिया गया था ।
वरीय प्रेरक संजय कुमार सिंह ने यह भी बताया कि बिहार सरकार उनलोगों से वेतन भुगतान के बदले नौकरी छोड़ने का कोर्ट से एफिडेविट माँग रही है जो उन सभी को मंजूर नहीं है। उन्होंने यह भी बताया की उनलोगों को मात्र 2000 रूपये मानदेय के रूप में मिलता था ।