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विशेष रिपोर्ट: क्या वाकई नीतीश कुमार समाजवाद, परिवारवाद और जातिवाद के विरोधी हैं !
बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है।
BIHAR NATION : बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। सीएम नीतीश कुमार ने रविवार को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करते हुए स्वजातीय व राजनीति में कम अनुभव रखनेवाले आरसीपी सिंह (रामचंद्र प्रसाद सिंह) को अपनी राजनीतिक उतराधिकारी बना दिया ।
आपको बता दें कि सीएम नीतीश कुमार हमेशा से समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान और बीजू पटनायक की परिवारवाद की राजनीति का विरोध करते रहे हैं लेकिन अब उन्होंने खुद पार्टी के समर्पित वरिष्ठ समाजवादी नेता वशिष्ठ नारायण सिंह और केसी त्यागी को दरकिनार करते हुए जदयू की कमान आरसीपी सिंह को सौंप दी है ।
नीतीश खुद को समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर की तरह वंशवाद और जातिवाद का विरोधी बताते रहे हैं। उन्होंने देश के कई राज्यों में समाजवादियों को जोड़ने के लिये कोशिश भी की है। लेकिन अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करते ही समाजवाद के दामन पर जातिवाद के दाग भी गहरे कर दिए। अरसे से ये सवाल लोगों के जेहन में उठ रहा था कि नीतीश कुमार के बाद जदयू का नेतृत्व कौन संभालेगा।
वहीं जनता के बीच यह संदेश भी दिया जा रहा था कि वे परिवारवाद के खिलाफ नहीं रहते तो अपने पुत्र को राजनीतिक विरासत सौंप देते ! इससे नीतीश कुमार की छवि भी लोगों में जबरदस्त बनी। लेकिन बात यह सत्य नहीं है। दरसल उनके बेटे निशांत का झुकाव अधयात्म और दर्शन में ज्यादा है। वे इससे जुड़ी बातें अधिक और बड़ी-बड़ी करते हैं ।
ये बातें उनके गाँव कल्याण विगहा के लोग दबे जुबान से नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं । निशांत को नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत संभालने की पहल भी की गई। लेकिन वे इन्कार कर गए । ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार को अन्य विकल्प चुनने की जरूरत पड़ी ।
दरअसल, बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण को मजबूत करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग शब्द का इस्तेमाल पहली बार नीतीश कुमार ने ही किया। नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं। कुर्मी जाति की आबादी भले ही कम है लेकिन पटना और उसके आसपास के जिलों में कुर्मी बेहद प्रभावशाली हैं।
कहीं तो ये बेहद दबंग भी हैं । 1977 में बिहार का पहला नरसंहार पटना से सटे में बेलछी में हुआ था। इस नरसंहार को अंजाम देने वाले प्रमुख आरोपी कुर्मी जाति के ही थे। लेकिन 1994 के आसपास नीतीश के नेतृत्व में कुर्मी जाति पूरी तरह से गोलबंद हुई और आज तक गोलबंद है। बाद के दिनों में नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक समीकरण से दलित, महादलित, कुशवाहा, अति पिछड़ी जातियों के एक बड़े समूह और सवर्ण भूमिहारों को अपने पक्ष में किया। लेकिन अंतिम में फिर विरासत सौपने का समय आया तो स्वजातिय आरसीपी सिंह को सौंप दी ।