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Breaking News: चिराग के चाचा पशुपति पारस ने तोड़ी चुपी,कहा-चिराग को अकेले छोड़ना मजबूरी है..

बिहार में एलजेपी में बगावती सुर थमने का नाम नहीं ले रहा है. एलजेपी के पाँचों सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है.

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जे.पी.चन्द्रा की विशेष रिपोर्ट

बिहार नेशन: बिहार में एलजेपी में बगावती सुर थमने का नाम नहीं ले रहा है. एलजेपी के पाँचों सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है. लेकिन इसपर पशुपति कुमार पारस का कोई बयान नहीं आ रहा था. लेकिन अब उन्होंने पहली बार अपनी चुपी तोड़ते हुए कहा है कि उन्होंने यह फैसला मजबूरी में लिया है. वे पार्टी को खत्म होते हुए नहीं देखना चाहते हैं. उनका यह निर्णय पार्टी के हित के लिए है.

पशुपति कुमार पारस ने कहा कि वे घुटन महसूस कर रहे थें. उन्होंने यह भी कहा कि अपने भाई दिवंगत रामविलास पासवान की 8 अक्टूबर 2020 के निधन के बाद चिराग द्वारा कुछ ऐसे गलत फैसले लिए गये की पार्टी विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है. बता दें कि पशुपति कुमार पारस ने बिहार विधानसभा चुनाव के समय सीएम नीतीश कुमार के कामों की काफी तारीफ़ की थी. जिसके बाद उन्हें पार्टी के नाराजगी का काफी सामना करना पड़ा था. बाद में उन्होंने अपनी बयान पर पार्टी से कारण बताओं नोटिस भेजने के बाद सफाई दी थी.

आपको बता दें कि सोमावार को एलजेपी के पाँचों बागी सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता मान लिया. इस बाबत लोकसभा अध्यक्ष को चिठ्ठी भी इन सांसदों ने लिखकर संसदीय दल के नेता के रूप में पशुपति पारस को मान्यता देने की भी मांग की है. वहीं चिराग के चाचा पशुपति पारस ने कहा कि उनके साथ पार्टी के सभी सांसद हैं.उन्होंने मजबूरी में यह फैसला लिया है.पार्टी के तमाम कार्यकर्ता और नेता चाहते थें कि गरीबों की लड़ाई के लिए पार्टी को एनडीए के साथ रहना चाहिये. लेकिन सभी को दरकिनार करते हुए चिराग पासवान ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया .

पशुपति कुमार पारस ने कहा कि चिराग उनके भतीजे और परिवार के सदस्य हैं. उनसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है. अगर वे चाहें तो पार्टी में बने रह सकते हैं.वे अभी भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.  उन्होंने आगे कहा कि अगर लोकसभा अध्यक्ष से पार्टी के संसदीय दल के नेता के रूप में मान्यता मिल जाती है तो वे चुनाव आयोग से मिलकर पार्टी पर अपना दावा भी ठोकेंगे. उन्होंने कहा कि कुछ ही घंटे में यह फैसला हो जाएगा.

गौरतलब है कि रविवार को पार्टी के 6 सांसदों में से 5 सांसदों ने एलजेपी से बगावत कर दी थी. सोमवार को पशुपति कुमार पारस को संसदीय दल का नेता भी चुन लिया गया है. वहीं चाचा और चचेरे भाई के इस बगावत के बाद चिराग पासवान बिलकुल अकेले पड़ गये हैं.

भले ही चिराग पासवान को छोड़कर एलजेपी के पाँचों सांसद पार्टी छोड़ रहे हैं लेकिन अभी भी एलजेपी के सर्वमान्य नेता चिराग पासवान ही हैं । लोजपा सुप्रीमों रामविलास पासवान ने अपने निधन से पूर्व ही चिराग पासवान को स्थापित कर दिया था । इसलिये उनकी जगह चाचा पशुपति पारस नहीं ले सकते हैं । पार्टी के समर्थक और कार्यकर्ता चिराग का साथ नहीं छोड़नेवाले हैं । ऐसी स्थिति में बीजेपी भी नहीं चाहेगी की वह चिराग पासवान को इग्नोर कर जेडीयू  को बेलगाम होने दे और राजद की ताकत को बढ़ा दे।

मालूम हो कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने जेडीयू को अर्श से फर्श पर ला दिया था। उस चुनाव में एलजेपी ने यह साबित कर दिया था की वह अकेले चुनाव जीत नहीं सकती है तो किसी को भी हराने की ताकत जरूर रखती है। जेडीयू को तो एलजेपी ने कम से कम 30 सीटों का नुकसान दिया था।  भले ही एलजेपी को एक भी सीट न मिली हो लेकिन उन्होंने एलजेपी की क्षमता को दिखा दिया कि उन्हें नजर अंदाज करना भारी भूल थी नीतीश कुमार के लिये। बीजेपी इस बात को बखूबी समझती है। उसे पता है की अगर एलजेपी आरजेडी के साथ जाएगा तो आरजेडी हाथों पर उठा लेगी । क्योंकि इससे तेजस्वी के जीत की राह और आसान हो जाएगी । जबकि सबसे अधिक नुकसान होगा तो वह है बीजेपी ।

वहीं इन सबके बीच राजनीतिक जानकारों का मानना है की बीजेपी की मजबूरी है दोनों को साथ लेकर चलना । मतलब न वह जेडीयू को छोड़ना चाहती है और न एलजेपी को । भले ही  यह बात अलग है कि जेडीयू के विरोध के कारण एलजेपी को मोदी कैबिनेट में जगह न मिले। लेकिन बीजेपी पहली बार इतना कमजोर दिख रही है। यहाँ एक बात और है की एलजेपी के पांचों सांसद भले ही जेडीयू में चले जाएंगे लेकिन कोई विशेष फायदा किसी को होनेवाली नहीं है क्योंकि ये सभी बीजेपी और एलजेपी की गठबंधन से चुनाव जीते हैं। बीजेपी चाहेगी आगामी लोकसभा चुनाव में भी एलजेपी और जेडीयू को जोड़कर रखा जाए. जो सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए हैं.

 

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